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काश एक इमरोज मेरी भी ज़िन्दगी में होता ...... तो जीने का फलसफा ही कुछ और होता , मैं चलती , मेरे संग संग चलता वो ...... जो रूकती , तो पल भर को ठहर जाता वो भी , हर अश्रु को मोती बना देता वो ..... जो रोती तो पल भर को सहम जाता वो भी , मैं हंसती खिलखिला उठता वो ...... जो मुस्कुराती तो अपने गम में भी मुस्कुरा उठता वो भी , मेरी हर हार को जीत बना देता वो ...... मेरी जीत के लिए जीती बाजी हार जाता वो भी , मेरी धुन में गूँज उठता वो........ जो गाती मैं तो संग संग गुनगुना उठता वो भी, मैं झूमती तो नाच उठता वो ........ जो गिरती मैं तो चलते चलते लड़खड़ा जाता वो भी , जो मरती तो मुझे अमर कर जाता वो , मेरे मरने के बाद भी अपनी कलम से मुझे जिवंत कर जाता वो ......... काश एक इमरोज.........
for Imoroz ji........... आसमां को छूने की एक चाहत सी जगी, तुझसे मिल के फिर पंच्छी सा उड़ने की चाहत सी जगी, पा सकना तो मुमकिन नहीं , फिर भी न जाने क्यूँ , तुम्हे पाने की चाहत सी जगी , झूठे रिश्तों की अनसुलझी डोर में उलझी सी मैं , जाने क्यूँ आज खुद में ही खुद को पाने की चाहत सी जगी, पाना खोना तो ज़िन्दगी की रीत है , पर आज सचमुच में ज़िन्दगी को जीने की चाहत सी जगी, बहुत अनमोल हो तुम इस ज़माने के लिए , तुम्हे इस ज़माने से चुराने की चाहत सी जगी, किसी ख्वाब को सच होते न देखा था मैंने , तुमसे मिल कर फिर से ख्वाब संजोने की चाहत सी जगी, मेरे हाथ में किसी ने कलम पकड़ा दी थी एक दिन , उसी कलम से अब जादू सा चलने की चाहत सी जगी.........
बड़ी शिद्दतो के बाद रूबरू हुए है आपसे , बीते कितने दिन और कितने महीने ....... रोज़ उसी ज़िन्दगी में से दो पल निकलते है ....... वही तुम थे वही हम थे बस फासले थोड़े कम थे , वो कल्पना , वो सोच , वो आँखों में बसी अनदेखी मूरत , एक पल को सब ठहर गया , जब रूबरू हुए है आपसे , कल्पना को हकीकत , सोच को नया आयाम , और अनदेखी मूरत में सिमट गयी तुम्हारी सूरत ..........