Friday, February 5, 2010

काश एक इमरोज.........

काश एक इमरोज मेरी भी ज़िन्दगी में होता......
तो जीने का फलसफा ही कुछ और होता,
मैं चलती, मेरे संग संग चलता वो......
जो रूकती, तो पल भर को ठहर जाता वो भी,
हर अश्रु को मोती बना देता वो.....
जो रोती तो पल भर को सहम जाता वो भी,
मैं हंसती खिलखिला उठता वो......
जो मुस्कुराती तो अपने गम में भी मुस्कुरा उठता वो भी,
मेरी हर हार को जीत बना देता वो......
मेरी जीत के लिए जीती बाजी हार जाता वो भी,
मेरी धुन में गूँज उठता वो........
जो गाती मैं तो संग संग गुनगुना उठता वो भी,
मैं झूमती तो नाच उठता वो........
जो गिरती मैं तो चलते चलते लड़खड़ा जाता वो भी,
जो मरती तो मुझे अमर कर जाता वो,
मेरे मरने के बाद भी अपनी कलम से मुझे जिवंत कर जाता वो.........
काश एक इमरोज.........


Tuesday, February 2, 2010

.चाहत सी जगी.......

for Imoroz ji...........

आसमां को छूने की एक चाहत सी जगी,
तुझसे मिल के फिर पंच्छी सा उड़ने की चाहत सी जगी,
पा सकना तो मुमकिन नहीं, फिर भी
जाने क्यूँ , तुम्हे पाने की चाहत सी जगी,
झूठे रिश्तों की अनसुलझी डोर में उलझी सी मैं,
जाने क्यूँ आज खुद में ही खुद को पाने की चाहत सी जगी,
पाना खोना तो ज़िन्दगी की रीत है, पर
आज सचमुच में ज़िन्दगी को जीने की चाहत सी जगी,
बहुत अनमोल हो तुम इस ज़माने के लिए ,
तुम्हे इस ज़माने से चुराने की चाहत सी जगी,
किसी ख्वाब को सच होते देखा था मैंने,
तुमसे मिल कर फिर से ख्वाब संजोने की चाहत सी जगी,
मेरे हाथ में किसी ने कलम पकड़ा दी थी एक दिन,
उसी कलम से अब जादू सा चलने की चाहत सी जगी.........

रूबरू...............

बड़ी शिद्दतो के बाद रूबरू हुए है आपसे ,
बीते कितने दिन और कितने महीने.......
रोज़ उसी ज़िन्दगी में से दो पल निकलते है.......
वही तुम थे वही हम थे बस फासले थोड़े कम थे ,
वो कल्पना, वो सोच, वो आँखों में बसी अनदेखी मूरत,
एक पल को सब ठहर गया, जब रूबरू हुए है आपसे ,
कल्पना को हकीकत, सोच को नया आयाम,
और अनदेखी मूरत में सिमट गयी तुम्हारी सूरत..........

Monday, September 7, 2009

तुम बिन...........

माना तुम बिन राह कठिन होगी.......
मंजिल भी बेमानी होगी..........
राहें गुमसुम और गलियां वीरानी होंगी.......
पर साथ न मुमकिन होगा अब......
ये बात मुझे समझनी होगी........
चाहे चल चल कर रुकना हो.......
या रुक रुक कर चलना हो.......
पर चलना है......
बस राहें नयी बनानी होंगी......
माना तुम बिन राह कठिन होगी....
मंजिल भी वीरानी होगी.......

आज ये जाना है मैंने......

तूने भी समझा है मुझे, आज ये जाना है मैंने......
मैंने ही नहीं तूने भी अपना माना है मुझे......
आज ये जाना है मैंने......
मेरी अनकही को भी समझा है तूने......
मेरी खामोशी को भी पहचाना है तूने......
आज ये जाना है मैंने.........
मैं ही नहीं तुम भी हो उस रिश्ते में जिसे कभी
न परिभाषित कर पाऊँगी मैं.......
आज या जाना है मैंने.........
वो लम्हा जब तुम साथ थे मेरे......
एक अजनबी सी थी मैं तुम्हारे लिए......
पर आज, मीलों की दूरियों से पहचाना है तुमने मुझे.....
आज ये जाना है मैंने...........
मैं कहती थी तुम सुनते थे......
पर आज बिन कहे ही सुना है तुमने मुझे........
आज ये जाना है मैंने.......
साथ होकर भी मेरी आँखों में न झांक पाए थे तुम....
साथ न होकर भी अब मेरी आँखों की गहराई को जाना है तुमने.......
आज ये जाना है मैंने.........
मेरे चेहरे को कभी न पढ़ पाए तुम......
पर मेरे हर दर्द को अब समझा है तुमने..............
आज ये जाना है मैंने...........
जो मैंने कहा वो न समझ पाए तुम.........
जो न कह पायी वो सब समझा है तुमने..........
हकीकत में आज ही जाना है तुमने मुझे..........
आज ये जाना है मैंने.......

Saturday, February 7, 2009

ख्वाइशें

जितना तुम्हे जानती हु.....
उतना ही तुम्हे पाने की ख्वाइश बढती जाती है......
पर ख्वाइशों का क्या है..... कोई अंत ही नही है.....
कल तक सिर्फ़ तुमसे बात करना चाहती थी.....
बात हुई तो तुमसे मुलाकात की ख्वाइश हुई....
एक मुलाकात हुई तो बार- बार मिलने की ख्वाइश हुई.....
हर ख्वाइश पूरी होने के बाद एक नई ख्वाइश हुई......

जानती हु न मिल सकोगे मुझे .....
पर ख्वाइशों का क्या करू???

क्यूँ मन उसी की ख्वाइश करता है....... जो मिल नही सकता....?
क्यूँ तमन्नाये पूरी होने से पहले ही दम तोड़ देती है....?????
इसी क्यूँ का जवाब धुन्दती मैं.........
बहुत दिनों बाद आप लोगो से फिर से रूबरू होने का मोका मिला.....
इन दिनों क्या कर रही थी, क्या सोच रही थी, उस पर अभी उलझन है,
बस ज़िन्दगी अपनी रफ़्तार से नदी सी बहे जा रही थी..... और मुझे भी अपने साथ बहा लिए
जा रही थी...
कुछ सोचने, समझने और थमने का मोका ही नही दे रही थी....
बस बहाए लिए जा रही थी मुझे अपने साथ,
और मैं निर्विरोध बहे जा रही थी.....
अपने कल और आज me इस कदर ulajh गई की सोचने samajhne की शक्ति ही नही reh गई थी....
बहुत दिनों बाद आप लोगो के समक्ष अपनी manodasha prakat करने का sahas फिर से जुटा पायी hu...
kripaya एक नज़र avashye डाले......

Tuesday, December 9, 2008

आज.......

कहना बहुत कुछ है, पर शब्दों की कमी सी है आज.....
गर शब्द मिल रहे है, तो लफ्जों की कमी सी है आज!
जज्बातों का दरिया तो है सीने में पर.....
जज्बातों में एहसासों की कमी सी है आज!
मेरी खामोशी को पढ़ लेना तुम......
लबों पे हर बात रुकी सी है आज!
नज़रों की झुकन को समझ लेना तुम......
कि नैनो में अश्कों की कमी सी है आज!
मेरी चाहत को महसूस कर लेना तुम.....
दिल के दरिया में तूफानों की कमी सी है आज!
मेरे कदमो की आहट को पहचान लेना तुम.....
दुनिया के शोर में सन्नाटे की कमी सी है आज!
चारों और भीड़ से घिरी हुई हूँ मैं......
कि इस भीड़ में मेरी तन्हाई को महसूस कर लेना तुम आज!
लबों पे हंसी और आँखों में ख़ुशी भी है......
पर इस हंसी में आँखों की नमी को महसूस कर लेना तुम आज!
इजहारे मुहब्बत मुमकिन न होगा हमसे......
झुकी पलकों स हुए इकरार को समझ लेना तुम आज!
गर इस जनम में मिलना मुमकिन न हुआ तो.......
मुझे अपनी साँसों में महसूस कर लेना तुम आज!


Friday, November 14, 2008

"प्यार" कल और आज

आज एक गीत याद आ रहा है.....
जब भी जी चाहे नयी दुनिया बसा लेते है लोग.....
एक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते है लोग !
आज लोग प्यार का दम भरते है....
I LOVE U बोल कर प्यार का इज़हार करते है!
3 शब्दों में सिमट जाये ये वो बात नहीं है......
छूने स मिल जाये ये वो एहसास नहीं है!
दो लोग अनकही बातो को समझ जाये......ये वो एहसास है,
दूर दूर होने पर भी लगता है..........कि वो पास है!
खामोशी ही सब कुछ कह जाती है.......
आँखों ही आँखों में बात हो जाती है.......
बिन छुए ही उसकी खुशबू साँसों में आती है........
साथ न होते हुए भी उसके साथ का एहसास दिलाती है!
पर आज प्यार की परिभाषा बदल स गयी है........
MOBILE पर प्यार हो जाता है........
SMS में इज़हार हो जाता है....
LIVE-IN-RELATIONSHIP प्यार कहलाता है.......
आज किसी से तो कल किसी और से हो जाता है........
इस तरह जीवन में न जाने कितनी बार "प्यार" हो जाता है!!

Tuesday, November 4, 2008

ज़िन्दगी......

उलझनों से भरी है ये जिंदगानी....
एक दिन होठो पे हंसी तो......
तो दूजे दिन आँखों में पानी!
कभी राहें अनजानी.....
तो कभी जानी पहचानी!
कभी सफ़र मुश्किल.....
तो कभी मंजिल बेमानी!
कभी राह में किसी साथी का मिलना....
तो कभी अपनों का बीच राह में छोड़ जाना!
पर फिर भी लहरों से चली जा रही है ये ज़िन्दगी......
कभी ऊपर...., कभी नीचे,.....
कभी गतिमय......, तो कभी एक चुप सा ठहर.......!
लहरों की गति को नापना बड़ा मुश्किल है,
ज़िन्दगी की अनिश्चितताओं से भरी हुई......
कभी रूकती.....,
कभी बहती.......,
रिश्तों में बंधी सी हुई......
दो किनारों में बंटी सी हुई.....
ख़ुशी के पलों में कल-कल कलरव करती.....
कभी भयावह तूफ़ान का रूप लेती......
तो कभी सब्र का बाँध तोड़ निकल नक़ल जाती.....
हर चीज़ को खुद में समेटते हुए.......
ज़िन्दगी को अंत की ओर धकेलती......
आँखों में फिर वही ज़िन्दगी जीने की चाह......
वही मोत् का भय.......
वही डर......