आज फिर बहुत रोने को जी चाहता है.......
जो भूली थी यादे उन यादो में फिर डूब जाने को जी चाहता है.........
अश्को को शब्दों में ढाला था एक दिन पर..........
आज फिर उन्ही अश्को से आँखों को भिगोने को जी चाहता है.........
कई चाहतें थी कभी, आज कोई चाहत नहीं है, कोई तमन्ना नहीं है ,........
पर आज फिर उन्ही चाहतो को चाहने को जी चाहता है.......
आँखों में ख्वाब थे , आज आँखे खली पड़ी है..........
पता है पूरे नहीं होते ख्वाब,.......
पर फिर भी एक नया ख्वाब देखने को जी चाह्ता है......
बचपन में गुडिया गुड्डो की शादी करते थे.........
वो शादी, वो बारात, वो नाचना, वो गाना, वो खेलना, वो कूदना, वो हंसी, वो ठिठोली, वो शरारते.........
जानती हूँ वापस नहीं आएगा आज कुछ भी ........
पर फिर भी आज बचपन में लोटने को जी चाहता है.......
पता है कुछ भी मुकम्मल नहीं है जहाँ में.........
पर फिर भी आज मुकम्मल होने को जी चाहता है..........
Friday, September 26, 2008
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12 comments:
पूरी ज़िन्दगी बचपन,और बीते लम्हों की बात जोहती निकल जाती है......मुकम्मल यही हैं वे ख्वाब,जिनकी तलाश में सफ़र गुजर जाता है,आंसुओं में ही हैं वे जज़्बात,जो सन्नाटे में भी गुनगुना जाते हैं..........विस्मृति में डूबे पदचिन्हों को सहेज लाते हैं........बहुत सुन्दर
काम के दरम्यान भी एहसासों ने कलम में जान फूंक दी
पता है कुछ भी मुकम्मल नहीं है जहाँ में.........
पर फिर भी आज मुकम्मल होने को जी चाहता है
mukammal hai na ye shabd mukammal hain
पता है कुछ भी मुकम्मल नहीं है जहाँ में.........
पर फिर भी आज मुकम्मल होने को जी चाहता है.
rani ji yeh lines mujhe personally bahut pasand aayi hain
keep it up .....
आज फिर बहुत रोने को जी चाहता है.......
जो भूली थी यादे उन यादो में फिर डूब जाने को जी चाहता है.........
अश्को को शब्दों में ढाला था एक दिन पर..........
आज फिर उन्ही अश्को से आँखों को भिगोने को जी चाहता है.........
कई चाहतें थी कभी, आज कोई चाहत नहीं है, कोई तमन्ना नहीं है ,........
पर आज फिर उन्ही चाहतो को चाहने को जी चाहता है.......
आँखों में ख्वाब थे , आज आँखे खली पड़ी है..........
dil ko chu gai hai ye panktiyan
वो कागज़ की कश्ती वो बारिश का पानी
कविता पढ़ते हुए ये पंक्तियाँ याद आती रहीं.
ये इस नज़्म की विशेषता है.
बचपन में गुडिया गुड्डो की शादी करते थे.........
वो शादी, वो बारात, वो नाचना, वो गाना, वो खेलना, वो कूदना, वो हंसी, वो ठिठोली, वो शरारते.........
जानती हूँ वापस नहीं आएगा आज कुछ भी ........
पर फिर भी आज बचपन में लोटने को जी चाहता है.......
क्या बात है आनंद आ गया पुरानी यादों में खो गए सच में बहुत गहराई सच्चाई के साथ शब्दों को पिरोया है आपने
एक ये वर्ड वेरिफिकेशन हटा दो तो सोने पे सुहागा हो जाए
@rani ji..bahut khub!
"अश्को को शब्दों में ढाला था एक दिन पर..........
आज फिर उन्ही अश्को से आँखों को भिगोने को जी चाहता है........."
jeewan chakr kee ek jhalak kau behad sundar dhang se pesh kiya hai.....hindee main shayrana ehsaas....aur uss par nazakat se piroye aapke shabd....padh kar alag sa sukun dete hain par.....iss anmol rachna ke liye...saadhuwaad!
...Ehsaas!
"अश्को को शब्दों में ढाला था एक दिन पर..........
आज फिर उन्ही अश्को से आँखों को भिगोने को जी चाहता है........."
ज़िन्दगी की यही दुविधा है...
जो छूट गए वो पल हमेशा याद आते है और आज के बदलते स्याह सपनों के कैनवास पर नारंगी रंग छोड़ जाते है...
आप की कूची इस स्याह -नारंगी क्षितिज को मधुरिम उजास देती-सी लगती है..
rani ji....
ashqo aur shando ko ek sath apne tola hai...apke man mein koi dard hai jisne ye karaya hai...aur dua hai wo dard kam ho.
ek baat kahungi rone ko jee chahta hai beshak roke khud ko halka kar sakte hai lekin usse na khoyee cheez bapic aani hai aur na kuch aur hoga siway kuch waqt ki rahat ke ya khud ko halka karne ke.
chahto ka marna kya hota hai janti hun isliye bas kuch na kah itna kahungi khushiya apki raah mein apka daman tham le...
cool nice..!
great sentiments..!!
u r awesome this time..!
पता है कुछ भी मुकम्मल नहीं है जहाँ में.........
पर फिर भी आज मुकम्मल होने को जी चाहता है..........
Rani ji, aapki rachnayen bar bar padhane ko ji chahata hai...
Aapki rachana jaise kahi gahare sarot
se ho kar aati hai....bahut kuchh hai gahra jo bahata hai paper par...
http://www.dev-poetry.blogspot.com/
Bahut acha likha hai aapne....
जानती हूँ वापस नहीं आएगा आज कुछ भी ........
पर फिर भी आज बचपन में लोटने को जी चाहता है.......
पता है कुछ भी मुकम्मल नहीं है जहाँ में.........
पर फिर भी आज मुकम्मल होने को जी चाहता है..........
http://dev-poetry.blogspot.com/
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