Thursday, October 16, 2008

साथ.......

वो रास्ते जाने पहचाने से थे,
राह पर चलने वाले भी अपने से थे.......
इतने लोगो का साथ देखकर खुद पर फक्र सा हुआ,
सोचा तन्हा नहीं हूँ,
मेरे साथ तो दुनिया चल रही है.....
सारी खुशियाँ थी पास मेरे,
सारे अपने थे साथ मेरे,
मेरी खुशियों में शरीक हो मेरे अपने बने थे वो.......
फिर कुछ मोसम बदले से लगे......
जैसे बसंत के बाद पेडो से पत्ते झड़ने से लगे........
कुछ दूर जा कर ये कदम डगमगाए, लड़खडाए.....
एक हाथ बढाया, कि थाम लेंगे साथी मुझे........
जोर की ठोकर लगी, मुह के बल ज़मीन पर जा गिरी........
आसपास देखा तो कोई भीड़ न थी.....
बस खुद कि परछाई साथी बनी थी......
घुटनों में चोट लगी, फक्र टूट गया था......
आँखों में आंसू थे....पर पोछने के लिए हाथ न थे.......
थोडा संभल कर बैठी तो खुद पर हंसी आई......
फिर एक कहावत याद आई,
साथ चलते to है सभी इस ज़िन्दगी के सफ़र में.........
पर साथ कोई देता नहीं है......
जी लेते है सभी हर किसी के लिए थोडा थोडा.......
पर कोई मरता नहीं कभी किसी के लिए.........

Tuesday, October 14, 2008

PLEASE HELP ME......

मैं एक चार्टेड बस से ऑफिस जाती हूँ, एक साल से ज्यादा हो चुका है मुझे उस बस में जाते हुए.....
बस का रास्ते में ख़राब होना अब हमारे daily routine में शामिल हो चुका था!
किसी भी दिन बस का ख़राब होना और हमारा बस के मालिक को कुछ न कुछ भला-बुरा कहना जीवन का एक हिस्सा बन चुका था........
इसी तरह शनिवार (11-10-08) को भी सुबह बस ख़राब हो गयी और उसी तरह कुछ न कुछ बडबडाते हुए अपने अपने रास्ते निकल गए!
शाम को फ़ोन से पता लगा की बस ठीक नहीं हुई है और हम अपनी अपनी सुविधा के अनुसार घर के लिए चल पड़े!
रास्ते में देखा बस उसी जगह पड़ी हुई थी,
अब तो हद हो गयी थी, और हम सभी ने फैसला किया की अब किसी और बस में जाया करेंगे इस बस का कोई भरोसा नहीं है!
हम अपने अपने घर जा कर सो गए......
सुबह मेरे एक मित्र का फ़ोन आया और उसने कहा की हमारी बस का मालिक मर गया!
नहीं पता की क्या कहा उसने और क्या सुना मैंने......
पर कुछ देर बाद खुद को सँभालने के बाद मैंने फिर से फोन किया तो पता लगा की ये सच था!
सड़क पर कड़ी बस को एक टेंपो ने टक्कर मार दी,
उस वक्त बस का मालिक दूसरी तरफ खडा हो कर बस ठीक कर रहा था!
पूरा दिन इस बात पर विश्वास करने की कोशिश करती रही की हाँ ये सच है........
अगले दिन सभी दूसरी बस में चले गए पर मैं न जा सकी!
आज हम सभी दूसरी बस ME आये (उसके भाई की),
बस के माहोल में कुछ भी बदलाव नहीं था,
वही हंसी मजाक, वही बाते, न कोई दुःख, न कोई शिकन माथे पर,
कुछ भी ऐसा नहीं था कि लगे हाँ एक इंसान हमारे बीच में से जा चुका है!
क्या हमारा उससे यही रिश्ता था कि हम उसकी बस में जाते थे?
अब हम बस बदल देंगे, बस यही रिश्ता था?
मोत कि इस हकीकत को समझ नहीं पा रही हूँ मैं,
इंसान का जीवन सिर्फ यही है?
उसका परिवार, उसके दो छोटे छोटे बच्चे, क्या होगा उन सब का?
हम तो बस बदल कर फिर से अपने अपने रास्ते चल पड़ेंगे,
यही हमर कर्त्तव्य है, यही हमारी मानवता है.........
कृपया कोई मुझे राह दिखाए की मैं क्या करू?
मैं इस प्रकार अपना रास्ता बदल कर नहीं चल सकती,
मेरा मन अशांत है.......
PLEASE HELP ME......

Monday, October 13, 2008

हे प्रभु!

है प्रभु! सिर्फ यही चाहत है मेरी....
किसी के एहसासों को मन से महसूस कर सकू,
यही तमन्ना है मेरी!
किसी के दुःख में आँखों में नमी आ सके,
तो किसी की ख़ुशी में ये लब मुस्कुरा सके......
किसी के जज्बातों को समझ सकू.......
और किसी को अपनी बातो से समझा सकू!
हे प्रभु! हाथो में इतनी शक्ति देना......
कि किसी गिरते हुए को संभाल सकू......
किसी के ज़ख्मो को छू कर महसूस कर सकू......
न रोता देख सकू किसी को.......
न कभी अनजाने में किसी के रोने का कारण बनू......
हे प्रभु! बस इंसान बन कर इंसान को समझ सकू.......
मन में प्यार, दया भावः, समर्पण, आँखों में विश्वास, और हाथो में शक्ति रहे.......
बस यही चाहत है मेरी......

२१वी सदी के रिश्ते.....

आज रिश्तो की पहचान कठिन सी हो गयी है......
हर रिश्ते में सिर्फ प्यार की कमी सी हो गयी है....
माँ बाप और संतान का रिश्ता सिर्फ पालन पोषण
औरनसीहतो तक ही सिमट कर रह गया है.....
क्या किया उन्होंने संतान के लिए......
कुछ नहीं सिर्फ अपना फ़र्ज निभाया है.....
बदले में कुछ चाहने का उन्हें हक नहीं...
क्यूंकि,बच्चो की अपनी भी तो LIFE है.......
पति पत्नी का रिश्ता सिर्फ salary day तक का ही रह गया है....
क्यूंकि दोनों की अपनी भी तो कोई personal life है......
दोस्ती का रिश्ता सिर्फ mobile तक ही सीमित है......
क्यूंकि free sms असीमित है......
आज पोते पोतिया, दादा दादी को नहीं जानते.....
वो इस रिश्ते को नहीं पहचानते......
क्यूंकि बूढे माँ बाप घर की शोभा बिगड़ते है.....
।वो लोग वृधाश्रम में ही भाते है........
भाई भाई जान के दुश्मन बन बैठे है....
क्यूंकि,बीवियों को भाते है........
रिश्तो की मिठास की कमी को sweet dish पूरा करती है.....
टूटे हुए रिश्तो को सिर्फ formality ही निभाती है.......
आज दौलत से एक अटूट रिश्ता जुड़ गया है......
यही वो विरासत है जो हर रिश्ते में सोगात बन गया है......
ढूंड सकते हो तो ढूंड लाओ
वो काछे धागों का रिश्ता.....
वो रिश्तो की सच्ची मिठास......
वो प्यार, वो बंधन...

Monday, October 6, 2008

कोन था वो

कभी वो मेरे पास हुआ करता था.......
कभी वो मेरे साथ हुआ करता था......
कभी वो मुझे सही ग़लत की पहचान कराया करता था........
कभी वो मुझे सच और झूट समझाया करता था.......
कभी वो मुझे राह दिखाया करता था........
कभी वो मुझे चलना सिखाया करता था..........
कभी वो मुझे दोस्ती क्या है, समझाया करता था......
कभी वो मुझे रिश्तो की पहचान कराया करता था.......
कोन था वो ? कभी न जान पायी थी......,
उसके रिश्ते तो कभी न पहचान पायी थी.......
बस कुछ जाना कुछ पहचाना सा लगता था वो......
कभी अपना कभी बेगाना सा लगता था वो.......
आज मैं अकेली हूँ, वो मेरे साथ नही है.........
फिर भी उसके होने का एहसास है........
क्यों चला गया वो.......?
क्या कभी लौट कर आएगा वो........?
क्या उसके बिना मेरा कोई अस्तित्व है........?
क्या कोई अपना था वो......?
या फिर कोई अनजाना था वो.........?
अनजाना था.....? फिर क्यों जाना पहचाना था वो......?
शयद मेरा ही अक्स था वो, जो मुझ में समाया था.........
या शायद मेरी कल्पना का साथी था वो........
या शायद मेरी तन्हाई का साथी था वो.........
पर जो भी था......... मुझ में पूर्ण था वो..........