Tuesday, December 9, 2008

आज.......

कहना बहुत कुछ है, पर शब्दों की कमी सी है आज.....
गर शब्द मिल रहे है, तो लफ्जों की कमी सी है आज!
जज्बातों का दरिया तो है सीने में पर.....
जज्बातों में एहसासों की कमी सी है आज!
मेरी खामोशी को पढ़ लेना तुम......
लबों पे हर बात रुकी सी है आज!
नज़रों की झुकन को समझ लेना तुम......
कि नैनो में अश्कों की कमी सी है आज!
मेरी चाहत को महसूस कर लेना तुम.....
दिल के दरिया में तूफानों की कमी सी है आज!
मेरे कदमो की आहट को पहचान लेना तुम.....
दुनिया के शोर में सन्नाटे की कमी सी है आज!
चारों और भीड़ से घिरी हुई हूँ मैं......
कि इस भीड़ में मेरी तन्हाई को महसूस कर लेना तुम आज!
लबों पे हंसी और आँखों में ख़ुशी भी है......
पर इस हंसी में आँखों की नमी को महसूस कर लेना तुम आज!
इजहारे मुहब्बत मुमकिन न होगा हमसे......
झुकी पलकों स हुए इकरार को समझ लेना तुम आज!
गर इस जनम में मिलना मुमकिन न हुआ तो.......
मुझे अपनी साँसों में महसूस कर लेना तुम आज!


Friday, November 14, 2008

"प्यार" कल और आज

आज एक गीत याद आ रहा है.....
जब भी जी चाहे नयी दुनिया बसा लेते है लोग.....
एक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते है लोग !
आज लोग प्यार का दम भरते है....
I LOVE U बोल कर प्यार का इज़हार करते है!
3 शब्दों में सिमट जाये ये वो बात नहीं है......
छूने स मिल जाये ये वो एहसास नहीं है!
दो लोग अनकही बातो को समझ जाये......ये वो एहसास है,
दूर दूर होने पर भी लगता है..........कि वो पास है!
खामोशी ही सब कुछ कह जाती है.......
आँखों ही आँखों में बात हो जाती है.......
बिन छुए ही उसकी खुशबू साँसों में आती है........
साथ न होते हुए भी उसके साथ का एहसास दिलाती है!
पर आज प्यार की परिभाषा बदल स गयी है........
MOBILE पर प्यार हो जाता है........
SMS में इज़हार हो जाता है....
LIVE-IN-RELATIONSHIP प्यार कहलाता है.......
आज किसी से तो कल किसी और से हो जाता है........
इस तरह जीवन में न जाने कितनी बार "प्यार" हो जाता है!!

Tuesday, November 4, 2008

ज़िन्दगी......

उलझनों से भरी है ये जिंदगानी....
एक दिन होठो पे हंसी तो......
तो दूजे दिन आँखों में पानी!
कभी राहें अनजानी.....
तो कभी जानी पहचानी!
कभी सफ़र मुश्किल.....
तो कभी मंजिल बेमानी!
कभी राह में किसी साथी का मिलना....
तो कभी अपनों का बीच राह में छोड़ जाना!
पर फिर भी लहरों से चली जा रही है ये ज़िन्दगी......
कभी ऊपर...., कभी नीचे,.....
कभी गतिमय......, तो कभी एक चुप सा ठहर.......!
लहरों की गति को नापना बड़ा मुश्किल है,
ज़िन्दगी की अनिश्चितताओं से भरी हुई......
कभी रूकती.....,
कभी बहती.......,
रिश्तों में बंधी सी हुई......
दो किनारों में बंटी सी हुई.....
ख़ुशी के पलों में कल-कल कलरव करती.....
कभी भयावह तूफ़ान का रूप लेती......
तो कभी सब्र का बाँध तोड़ निकल नक़ल जाती.....
हर चीज़ को खुद में समेटते हुए.......
ज़िन्दगी को अंत की ओर धकेलती......
आँखों में फिर वही ज़िन्दगी जीने की चाह......
वही मोत् का भय.......
वही डर......


Thursday, October 16, 2008

साथ.......

वो रास्ते जाने पहचाने से थे,
राह पर चलने वाले भी अपने से थे.......
इतने लोगो का साथ देखकर खुद पर फक्र सा हुआ,
सोचा तन्हा नहीं हूँ,
मेरे साथ तो दुनिया चल रही है.....
सारी खुशियाँ थी पास मेरे,
सारे अपने थे साथ मेरे,
मेरी खुशियों में शरीक हो मेरे अपने बने थे वो.......
फिर कुछ मोसम बदले से लगे......
जैसे बसंत के बाद पेडो से पत्ते झड़ने से लगे........
कुछ दूर जा कर ये कदम डगमगाए, लड़खडाए.....
एक हाथ बढाया, कि थाम लेंगे साथी मुझे........
जोर की ठोकर लगी, मुह के बल ज़मीन पर जा गिरी........
आसपास देखा तो कोई भीड़ न थी.....
बस खुद कि परछाई साथी बनी थी......
घुटनों में चोट लगी, फक्र टूट गया था......
आँखों में आंसू थे....पर पोछने के लिए हाथ न थे.......
थोडा संभल कर बैठी तो खुद पर हंसी आई......
फिर एक कहावत याद आई,
साथ चलते to है सभी इस ज़िन्दगी के सफ़र में.........
पर साथ कोई देता नहीं है......
जी लेते है सभी हर किसी के लिए थोडा थोडा.......
पर कोई मरता नहीं कभी किसी के लिए.........

Tuesday, October 14, 2008

PLEASE HELP ME......

मैं एक चार्टेड बस से ऑफिस जाती हूँ, एक साल से ज्यादा हो चुका है मुझे उस बस में जाते हुए.....
बस का रास्ते में ख़राब होना अब हमारे daily routine में शामिल हो चुका था!
किसी भी दिन बस का ख़राब होना और हमारा बस के मालिक को कुछ न कुछ भला-बुरा कहना जीवन का एक हिस्सा बन चुका था........
इसी तरह शनिवार (11-10-08) को भी सुबह बस ख़राब हो गयी और उसी तरह कुछ न कुछ बडबडाते हुए अपने अपने रास्ते निकल गए!
शाम को फ़ोन से पता लगा की बस ठीक नहीं हुई है और हम अपनी अपनी सुविधा के अनुसार घर के लिए चल पड़े!
रास्ते में देखा बस उसी जगह पड़ी हुई थी,
अब तो हद हो गयी थी, और हम सभी ने फैसला किया की अब किसी और बस में जाया करेंगे इस बस का कोई भरोसा नहीं है!
हम अपने अपने घर जा कर सो गए......
सुबह मेरे एक मित्र का फ़ोन आया और उसने कहा की हमारी बस का मालिक मर गया!
नहीं पता की क्या कहा उसने और क्या सुना मैंने......
पर कुछ देर बाद खुद को सँभालने के बाद मैंने फिर से फोन किया तो पता लगा की ये सच था!
सड़क पर कड़ी बस को एक टेंपो ने टक्कर मार दी,
उस वक्त बस का मालिक दूसरी तरफ खडा हो कर बस ठीक कर रहा था!
पूरा दिन इस बात पर विश्वास करने की कोशिश करती रही की हाँ ये सच है........
अगले दिन सभी दूसरी बस में चले गए पर मैं न जा सकी!
आज हम सभी दूसरी बस ME आये (उसके भाई की),
बस के माहोल में कुछ भी बदलाव नहीं था,
वही हंसी मजाक, वही बाते, न कोई दुःख, न कोई शिकन माथे पर,
कुछ भी ऐसा नहीं था कि लगे हाँ एक इंसान हमारे बीच में से जा चुका है!
क्या हमारा उससे यही रिश्ता था कि हम उसकी बस में जाते थे?
अब हम बस बदल देंगे, बस यही रिश्ता था?
मोत कि इस हकीकत को समझ नहीं पा रही हूँ मैं,
इंसान का जीवन सिर्फ यही है?
उसका परिवार, उसके दो छोटे छोटे बच्चे, क्या होगा उन सब का?
हम तो बस बदल कर फिर से अपने अपने रास्ते चल पड़ेंगे,
यही हमर कर्त्तव्य है, यही हमारी मानवता है.........
कृपया कोई मुझे राह दिखाए की मैं क्या करू?
मैं इस प्रकार अपना रास्ता बदल कर नहीं चल सकती,
मेरा मन अशांत है.......
PLEASE HELP ME......

Monday, October 13, 2008

हे प्रभु!

है प्रभु! सिर्फ यही चाहत है मेरी....
किसी के एहसासों को मन से महसूस कर सकू,
यही तमन्ना है मेरी!
किसी के दुःख में आँखों में नमी आ सके,
तो किसी की ख़ुशी में ये लब मुस्कुरा सके......
किसी के जज्बातों को समझ सकू.......
और किसी को अपनी बातो से समझा सकू!
हे प्रभु! हाथो में इतनी शक्ति देना......
कि किसी गिरते हुए को संभाल सकू......
किसी के ज़ख्मो को छू कर महसूस कर सकू......
न रोता देख सकू किसी को.......
न कभी अनजाने में किसी के रोने का कारण बनू......
हे प्रभु! बस इंसान बन कर इंसान को समझ सकू.......
मन में प्यार, दया भावः, समर्पण, आँखों में विश्वास, और हाथो में शक्ति रहे.......
बस यही चाहत है मेरी......

२१वी सदी के रिश्ते.....

आज रिश्तो की पहचान कठिन सी हो गयी है......
हर रिश्ते में सिर्फ प्यार की कमी सी हो गयी है....
माँ बाप और संतान का रिश्ता सिर्फ पालन पोषण
औरनसीहतो तक ही सिमट कर रह गया है.....
क्या किया उन्होंने संतान के लिए......
कुछ नहीं सिर्फ अपना फ़र्ज निभाया है.....
बदले में कुछ चाहने का उन्हें हक नहीं...
क्यूंकि,बच्चो की अपनी भी तो LIFE है.......
पति पत्नी का रिश्ता सिर्फ salary day तक का ही रह गया है....
क्यूंकि दोनों की अपनी भी तो कोई personal life है......
दोस्ती का रिश्ता सिर्फ mobile तक ही सीमित है......
क्यूंकि free sms असीमित है......
आज पोते पोतिया, दादा दादी को नहीं जानते.....
वो इस रिश्ते को नहीं पहचानते......
क्यूंकि बूढे माँ बाप घर की शोभा बिगड़ते है.....
।वो लोग वृधाश्रम में ही भाते है........
भाई भाई जान के दुश्मन बन बैठे है....
क्यूंकि,बीवियों को भाते है........
रिश्तो की मिठास की कमी को sweet dish पूरा करती है.....
टूटे हुए रिश्तो को सिर्फ formality ही निभाती है.......
आज दौलत से एक अटूट रिश्ता जुड़ गया है......
यही वो विरासत है जो हर रिश्ते में सोगात बन गया है......
ढूंड सकते हो तो ढूंड लाओ
वो काछे धागों का रिश्ता.....
वो रिश्तो की सच्ची मिठास......
वो प्यार, वो बंधन...

Monday, October 6, 2008

कोन था वो

कभी वो मेरे पास हुआ करता था.......
कभी वो मेरे साथ हुआ करता था......
कभी वो मुझे सही ग़लत की पहचान कराया करता था........
कभी वो मुझे सच और झूट समझाया करता था.......
कभी वो मुझे राह दिखाया करता था........
कभी वो मुझे चलना सिखाया करता था..........
कभी वो मुझे दोस्ती क्या है, समझाया करता था......
कभी वो मुझे रिश्तो की पहचान कराया करता था.......
कोन था वो ? कभी न जान पायी थी......,
उसके रिश्ते तो कभी न पहचान पायी थी.......
बस कुछ जाना कुछ पहचाना सा लगता था वो......
कभी अपना कभी बेगाना सा लगता था वो.......
आज मैं अकेली हूँ, वो मेरे साथ नही है.........
फिर भी उसके होने का एहसास है........
क्यों चला गया वो.......?
क्या कभी लौट कर आएगा वो........?
क्या उसके बिना मेरा कोई अस्तित्व है........?
क्या कोई अपना था वो......?
या फिर कोई अनजाना था वो.........?
अनजाना था.....? फिर क्यों जाना पहचाना था वो......?
शयद मेरा ही अक्स था वो, जो मुझ में समाया था.........
या शायद मेरी कल्पना का साथी था वो........
या शायद मेरी तन्हाई का साथी था वो.........
पर जो भी था......... मुझ में पूर्ण था वो..........







Friday, September 26, 2008

जी चाहता है........

आज फिर बहुत रोने को जी चाहता है.......
जो भूली थी यादे उन यादो में फिर डूब जाने को जी चाहता है.........
अश्को को शब्दों में ढाला था एक दिन पर..........
आज फिर उन्ही अश्को से आँखों को भिगोने को जी चाहता है.........
कई चाहतें थी कभी, आज कोई चाहत नहीं है, कोई तमन्ना नहीं है ,........
पर आज फिर उन्ही चाहतो को चाहने को जी चाहता है.......
आँखों में ख्वाब थे , आज आँखे खली पड़ी है..........
पता है पूरे नहीं होते ख्वाब,.......
पर फिर भी एक नया ख्वाब देखने को जी चाह्ता है......
बचपन में गुडिया गुड्डो की शादी करते थे.........
वो शादी, वो बारात, वो नाचना, वो गाना, वो खेलना, वो कूदना, वो हंसी, वो ठिठोली, वो शरारते.........
जानती हूँ वापस नहीं आएगा आज कुछ भी ........
पर फिर भी आज बचपन में लोटने को जी चाहता है.......
पता है कुछ भी मुकम्मल नहीं है जहाँ में.........
पर फिर भी आज मुकम्मल होने को जी चाहता है..........

Wednesday, September 24, 2008

तलाश

भटक रही हूँ मैं सहारे की तलाश में .......
नदी सी बह रही हूँ, किनारे की आस में........
खो रही हूँ अँधेरे में..........
रौशनी की तलाश में.......
खुद में ही उलझी हुई हूँ........
खुद की तलाश में............

अधूरापन

अधूरी है जिंदगानी...........
अधूरी है ये जीवन की कहानी........
अधूरी है ख्वाइशें ........
अधूरे है ख्वाब..........
अधूरी है खुशियाँ.......
अधूरे है हम और तुम....................

कुछ लिखूं

दिल चाहा एक पहेली लिखूं .........
रात को अपनी सहेली लिखूं......
चाँद को अपना संगी और...........
तारों को अपना साथी लिखूं......
दिल ने कहा "तुमको" "मैं" ........
और ख़ुद को.....................तुम लिखूं...............

फिर सूरज चमका, फिर किरणे बिखरी........
फिर ख्वाबों को भूल,
हकीकत नज़र आई......
सुबह की रौशनी में दिल ने कहा..........
कोई गीत लिखूं.........
ज़िन्दगी की इस हकीकत को अपना "मनमीत" लिखूं.....
दिल ने कहा सबसे पहले ये गीत तुम्हे लिखूं.........................

Tuesday, September 23, 2008

खामोशी

सब कहते है मैं बहुत बोलती हूँ,
पर आज वक़्त खामोश कर गया मुझे,........
जो मेरी खामोशी को समझ गया.........
उसने कहा अब चुप हो जाओ
और जो न समझ सका वो कहने लगा की कुछ तो बोलो बहुत हो गयी खामोशी...............
कभी खामोशियाँ सब कुछ कह जाती है...........
दिल का आइना है खामोशी...........
अश्कों की जुबान है खामोशी.........
हर उनकाही बात का ज़वाब है खामोशी..........
बहुत सी उलझनों की सुलझन है खामोशी.........
बहुत से प्रश्नों का हल है खामोशी.........
कुछ रिश्तों की परिभाषा भी है खामोशी......
आज जो मैं कह रही हूँ वो मेरी सोच है और
जो नहीं कह पा रही हूँ वो मेरी उनकाही खामोशी है...........
खामोशियों की अपनी एक जुबान होती है...........
जो समझ सके उसके लिए हर जवाब.........है खामोशी...........
और जो ना समझ सके उसके लिए कई सवाल है खामोशी...........

WHY?

WHY SOMETIMES WE FEEL HELPLESS................?
WHY SOMETIMES WE FEEL LONELY WITHIN A HUGE CROWD...................?
WHY SOMEONE BECOMES EVERYTHING OF LIFE...................?
WHY SOMETIMES EYES FULL OF TEARS..........................?
WHY SOMETIMES WE WANT TO LIVE FOR SOMEONE...................?
WHY SOMETIMES WE WANT TO DIE........................?

Friday, September 19, 2008

कथनी और करनी

सभी मुझसे कहते है कि "तुम " "PRACTICAL" नही हो,
ख्वाबों की दुनिया में जीती हो,........
कोई कहता कि ज्यादा सोचा मत करो
तो कोई कहता है कि खुली आंखों से ख्वाब देखना बंद करो!
मैं नि:शब्द एकटक सबको निहारती रह जाती हूँ,.........
क्या सचमुच "उनमे" और "मुझमे" फर्क है?
क्या किसी पर "विश्वास" करना " PRACTICAL" न होने को दर्शाता है?
क्या किसी के गम में अपनी आँखों में आंसू आ जाना आपका " लेवल" गिरता है?
क्या किसी कि खुशी में उसके साथ हंस पड़ना "निर्लजता" है?
क्या लाचारगी भरे हाथो को सहारा देना आपकी "रेपुटेशन" ख़राब करता है?
क्या सही को सही कहना ग़लत है?
क्या किसी के एहसासों को महसूस करना "पागलपन" है?
इन्ही सब प्रश्नों के उत्तर धुन्ध्ते मैं मूक सी खड़ी रह जाती हूँ...................
तभी मेरी "सहेली" ने आ कर "मुझसे" कहा- चल यहाँ से जल्दी निकलते है,
वृधाश्रम से चंदा मांगने वाले आ रहे है!
और "मैं" तेज कदमो से उसके साथ निकल गई..............
सभी " सवाल" पीछे छुट गए और.........
"मैं" सभी "जवाबों" को लिए आगे बढ़ गई!!!!!!!!

Thursday, September 18, 2008

Bachpan

बचपन में कहानियां सुनते थे,राजा-रानी के किस्से, परियों के कहानी, अलादीन की जादुई दुनिया, सिंदबाद का जहाज, अली बाबा और चालीस चोर.......और संसार उन्ही कहानियो में सिमट जाता था!खेलते हुए कभी अलादीन के चिराग को तो कभी राजा-रानी की पोशाकों को खोजते थे........आँखे कभी न पूरा होने वाले ख्वाब बुन लिया करती थी!आज आँखों पर "चश्मा" चढ़ गया है, हर ख्वाब को आने से पहले "इजाज़त" लेनी पड़ती है.....जो ख्वाब हकीकत के दायेरे से बड़ा होता है...वो धुंधला नज़र आता हैअब कहानियो के आवश्यकता नहीं है........हर इन्सान दोहरी ज़िन्दगी जी रहा है!एक कहानी तो दूसरा "जीवन सत्य"एक का जीवन दुसरे के इलिए कहानी है,कल और आज में फर्क सिर्फ इतना है......कल एक ही कहानी को बार बार दोहराया जाता था........आज हर "कहानी" में नयापन है, ....... "हकीकत का"

PYAR

" क्या कभी प्यार भी पूरा होता है, जिसका पहला अक्षर ही अधूरा होता है"सोचा, चलो इस बात को झूट साबित करते है!बहुत कोशिश की पर प्यार नहीं हुआ......क्या करती..............कहा छोडो.......फिर एक दिन पता चला कि मुझे प्यार हो गया है!कब हुआ! पता नहीं! पर हो गया था,सोचा अच्छा ही हुआ, अब इस कहावत को झुठला दूंगी......सब कुछ नया नया सो था.... अलग अलग सो.....कभी न हुआ वो एहसास था........खुली आँखों से देखा हुआ ख्वाब था.......मन हर वक़्त सुंदर सपने बुनता था,ख्वाबों कि दुनिया कितनी हसीन होती है, ये तब ही जाना.....प्यार क्या होता है ये भी तब जाना!ये वो आइना है जिसमे आप खुद दो और सिर्फ खुद को ही देखना चाहते है, परपर एक हलकी सी ठोकर उस आईने को तोड़ भी देती है.....अब ये मान चुकी हूँ कि किस्मत को मात देना आसन नहीं......क्यूंकि सचमुच "प्यार" का पहला अक्षर अधूरा होता है......अधूरा है तब तक ही सही है.......पूरा होते ही (पयार) ये गलत हो जाता है........