Friday, September 26, 2008

जी चाहता है........

आज फिर बहुत रोने को जी चाहता है.......
जो भूली थी यादे उन यादो में फिर डूब जाने को जी चाहता है.........
अश्को को शब्दों में ढाला था एक दिन पर..........
आज फिर उन्ही अश्को से आँखों को भिगोने को जी चाहता है.........
कई चाहतें थी कभी, आज कोई चाहत नहीं है, कोई तमन्ना नहीं है ,........
पर आज फिर उन्ही चाहतो को चाहने को जी चाहता है.......
आँखों में ख्वाब थे , आज आँखे खली पड़ी है..........
पता है पूरे नहीं होते ख्वाब,.......
पर फिर भी एक नया ख्वाब देखने को जी चाह्ता है......
बचपन में गुडिया गुड्डो की शादी करते थे.........
वो शादी, वो बारात, वो नाचना, वो गाना, वो खेलना, वो कूदना, वो हंसी, वो ठिठोली, वो शरारते.........
जानती हूँ वापस नहीं आएगा आज कुछ भी ........
पर फिर भी आज बचपन में लोटने को जी चाहता है.......
पता है कुछ भी मुकम्मल नहीं है जहाँ में.........
पर फिर भी आज मुकम्मल होने को जी चाहता है..........

Wednesday, September 24, 2008

तलाश

भटक रही हूँ मैं सहारे की तलाश में .......
नदी सी बह रही हूँ, किनारे की आस में........
खो रही हूँ अँधेरे में..........
रौशनी की तलाश में.......
खुद में ही उलझी हुई हूँ........
खुद की तलाश में............

अधूरापन

अधूरी है जिंदगानी...........
अधूरी है ये जीवन की कहानी........
अधूरी है ख्वाइशें ........
अधूरे है ख्वाब..........
अधूरी है खुशियाँ.......
अधूरे है हम और तुम....................

कुछ लिखूं

दिल चाहा एक पहेली लिखूं .........
रात को अपनी सहेली लिखूं......
चाँद को अपना संगी और...........
तारों को अपना साथी लिखूं......
दिल ने कहा "तुमको" "मैं" ........
और ख़ुद को.....................तुम लिखूं...............

फिर सूरज चमका, फिर किरणे बिखरी........
फिर ख्वाबों को भूल,
हकीकत नज़र आई......
सुबह की रौशनी में दिल ने कहा..........
कोई गीत लिखूं.........
ज़िन्दगी की इस हकीकत को अपना "मनमीत" लिखूं.....
दिल ने कहा सबसे पहले ये गीत तुम्हे लिखूं.........................

Tuesday, September 23, 2008

खामोशी

सब कहते है मैं बहुत बोलती हूँ,
पर आज वक़्त खामोश कर गया मुझे,........
जो मेरी खामोशी को समझ गया.........
उसने कहा अब चुप हो जाओ
और जो न समझ सका वो कहने लगा की कुछ तो बोलो बहुत हो गयी खामोशी...............
कभी खामोशियाँ सब कुछ कह जाती है...........
दिल का आइना है खामोशी...........
अश्कों की जुबान है खामोशी.........
हर उनकाही बात का ज़वाब है खामोशी..........
बहुत सी उलझनों की सुलझन है खामोशी.........
बहुत से प्रश्नों का हल है खामोशी.........
कुछ रिश्तों की परिभाषा भी है खामोशी......
आज जो मैं कह रही हूँ वो मेरी सोच है और
जो नहीं कह पा रही हूँ वो मेरी उनकाही खामोशी है...........
खामोशियों की अपनी एक जुबान होती है...........
जो समझ सके उसके लिए हर जवाब.........है खामोशी...........
और जो ना समझ सके उसके लिए कई सवाल है खामोशी...........

WHY?

WHY SOMETIMES WE FEEL HELPLESS................?
WHY SOMETIMES WE FEEL LONELY WITHIN A HUGE CROWD...................?
WHY SOMEONE BECOMES EVERYTHING OF LIFE...................?
WHY SOMETIMES EYES FULL OF TEARS..........................?
WHY SOMETIMES WE WANT TO LIVE FOR SOMEONE...................?
WHY SOMETIMES WE WANT TO DIE........................?

Friday, September 19, 2008

कथनी और करनी

सभी मुझसे कहते है कि "तुम " "PRACTICAL" नही हो,
ख्वाबों की दुनिया में जीती हो,........
कोई कहता कि ज्यादा सोचा मत करो
तो कोई कहता है कि खुली आंखों से ख्वाब देखना बंद करो!
मैं नि:शब्द एकटक सबको निहारती रह जाती हूँ,.........
क्या सचमुच "उनमे" और "मुझमे" फर्क है?
क्या किसी पर "विश्वास" करना " PRACTICAL" न होने को दर्शाता है?
क्या किसी के गम में अपनी आँखों में आंसू आ जाना आपका " लेवल" गिरता है?
क्या किसी कि खुशी में उसके साथ हंस पड़ना "निर्लजता" है?
क्या लाचारगी भरे हाथो को सहारा देना आपकी "रेपुटेशन" ख़राब करता है?
क्या सही को सही कहना ग़लत है?
क्या किसी के एहसासों को महसूस करना "पागलपन" है?
इन्ही सब प्रश्नों के उत्तर धुन्ध्ते मैं मूक सी खड़ी रह जाती हूँ...................
तभी मेरी "सहेली" ने आ कर "मुझसे" कहा- चल यहाँ से जल्दी निकलते है,
वृधाश्रम से चंदा मांगने वाले आ रहे है!
और "मैं" तेज कदमो से उसके साथ निकल गई..............
सभी " सवाल" पीछे छुट गए और.........
"मैं" सभी "जवाबों" को लिए आगे बढ़ गई!!!!!!!!

Thursday, September 18, 2008

Bachpan

बचपन में कहानियां सुनते थे,राजा-रानी के किस्से, परियों के कहानी, अलादीन की जादुई दुनिया, सिंदबाद का जहाज, अली बाबा और चालीस चोर.......और संसार उन्ही कहानियो में सिमट जाता था!खेलते हुए कभी अलादीन के चिराग को तो कभी राजा-रानी की पोशाकों को खोजते थे........आँखे कभी न पूरा होने वाले ख्वाब बुन लिया करती थी!आज आँखों पर "चश्मा" चढ़ गया है, हर ख्वाब को आने से पहले "इजाज़त" लेनी पड़ती है.....जो ख्वाब हकीकत के दायेरे से बड़ा होता है...वो धुंधला नज़र आता हैअब कहानियो के आवश्यकता नहीं है........हर इन्सान दोहरी ज़िन्दगी जी रहा है!एक कहानी तो दूसरा "जीवन सत्य"एक का जीवन दुसरे के इलिए कहानी है,कल और आज में फर्क सिर्फ इतना है......कल एक ही कहानी को बार बार दोहराया जाता था........आज हर "कहानी" में नयापन है, ....... "हकीकत का"

PYAR

" क्या कभी प्यार भी पूरा होता है, जिसका पहला अक्षर ही अधूरा होता है"सोचा, चलो इस बात को झूट साबित करते है!बहुत कोशिश की पर प्यार नहीं हुआ......क्या करती..............कहा छोडो.......फिर एक दिन पता चला कि मुझे प्यार हो गया है!कब हुआ! पता नहीं! पर हो गया था,सोचा अच्छा ही हुआ, अब इस कहावत को झुठला दूंगी......सब कुछ नया नया सो था.... अलग अलग सो.....कभी न हुआ वो एहसास था........खुली आँखों से देखा हुआ ख्वाब था.......मन हर वक़्त सुंदर सपने बुनता था,ख्वाबों कि दुनिया कितनी हसीन होती है, ये तब ही जाना.....प्यार क्या होता है ये भी तब जाना!ये वो आइना है जिसमे आप खुद दो और सिर्फ खुद को ही देखना चाहते है, परपर एक हलकी सी ठोकर उस आईने को तोड़ भी देती है.....अब ये मान चुकी हूँ कि किस्मत को मात देना आसन नहीं......क्यूंकि सचमुच "प्यार" का पहला अक्षर अधूरा होता है......अधूरा है तब तक ही सही है.......पूरा होते ही (पयार) ये गलत हो जाता है........