Monday, September 7, 2009

तुम बिन...........

माना तुम बिन राह कठिन होगी.......
मंजिल भी बेमानी होगी..........
राहें गुमसुम और गलियां वीरानी होंगी.......
पर साथ न मुमकिन होगा अब......
ये बात मुझे समझनी होगी........
चाहे चल चल कर रुकना हो.......
या रुक रुक कर चलना हो.......
पर चलना है......
बस राहें नयी बनानी होंगी......
माना तुम बिन राह कठिन होगी....
मंजिल भी वीरानी होगी.......

आज ये जाना है मैंने......

तूने भी समझा है मुझे, आज ये जाना है मैंने......
मैंने ही नहीं तूने भी अपना माना है मुझे......
आज ये जाना है मैंने......
मेरी अनकही को भी समझा है तूने......
मेरी खामोशी को भी पहचाना है तूने......
आज ये जाना है मैंने.........
मैं ही नहीं तुम भी हो उस रिश्ते में जिसे कभी
न परिभाषित कर पाऊँगी मैं.......
आज या जाना है मैंने.........
वो लम्हा जब तुम साथ थे मेरे......
एक अजनबी सी थी मैं तुम्हारे लिए......
पर आज, मीलों की दूरियों से पहचाना है तुमने मुझे.....
आज ये जाना है मैंने...........
मैं कहती थी तुम सुनते थे......
पर आज बिन कहे ही सुना है तुमने मुझे........
आज ये जाना है मैंने.......
साथ होकर भी मेरी आँखों में न झांक पाए थे तुम....
साथ न होकर भी अब मेरी आँखों की गहराई को जाना है तुमने.......
आज ये जाना है मैंने.........
मेरे चेहरे को कभी न पढ़ पाए तुम......
पर मेरे हर दर्द को अब समझा है तुमने..............
आज ये जाना है मैंने...........
जो मैंने कहा वो न समझ पाए तुम.........
जो न कह पायी वो सब समझा है तुमने..........
हकीकत में आज ही जाना है तुमने मुझे..........
आज ये जाना है मैंने.......

Saturday, February 7, 2009

ख्वाइशें

जितना तुम्हे जानती हु.....
उतना ही तुम्हे पाने की ख्वाइश बढती जाती है......
पर ख्वाइशों का क्या है..... कोई अंत ही नही है.....
कल तक सिर्फ़ तुमसे बात करना चाहती थी.....
बात हुई तो तुमसे मुलाकात की ख्वाइश हुई....
एक मुलाकात हुई तो बार- बार मिलने की ख्वाइश हुई.....
हर ख्वाइश पूरी होने के बाद एक नई ख्वाइश हुई......

जानती हु न मिल सकोगे मुझे .....
पर ख्वाइशों का क्या करू???

क्यूँ मन उसी की ख्वाइश करता है....... जो मिल नही सकता....?
क्यूँ तमन्नाये पूरी होने से पहले ही दम तोड़ देती है....?????
इसी क्यूँ का जवाब धुन्दती मैं.........
बहुत दिनों बाद आप लोगो से फिर से रूबरू होने का मोका मिला.....
इन दिनों क्या कर रही थी, क्या सोच रही थी, उस पर अभी उलझन है,
बस ज़िन्दगी अपनी रफ़्तार से नदी सी बहे जा रही थी..... और मुझे भी अपने साथ बहा लिए
जा रही थी...
कुछ सोचने, समझने और थमने का मोका ही नही दे रही थी....
बस बहाए लिए जा रही थी मुझे अपने साथ,
और मैं निर्विरोध बहे जा रही थी.....
अपने कल और आज me इस कदर ulajh गई की सोचने samajhne की शक्ति ही नही reh गई थी....
बहुत दिनों बाद आप लोगो के समक्ष अपनी manodasha prakat करने का sahas फिर से जुटा पायी hu...
kripaya एक नज़र avashye डाले......