कभी वो मेरे पास हुआ करता था.......
कभी वो मेरे साथ हुआ करता था......
कभी वो मुझे सही ग़लत की पहचान कराया करता था........
कभी वो मुझे सच और झूट समझाया करता था.......
कभी वो मुझे राह दिखाया करता था........
कभी वो मुझे चलना सिखाया करता था..........
कभी वो मुझे दोस्ती क्या है, समझाया करता था......
कभी वो मुझे रिश्तो की पहचान कराया करता था.......
कोन था वो ? कभी न जान पायी थी......,
उसके रिश्ते तो कभी न पहचान पायी थी.......
बस कुछ जाना कुछ पहचाना सा लगता था वो......
कभी अपना कभी बेगाना सा लगता था वो.......
आज मैं अकेली हूँ, वो मेरे साथ नही है.........
फिर भी उसके होने का एहसास है........
क्यों चला गया वो.......?
क्या कभी लौट कर आएगा वो........?
क्या उसके बिना मेरा कोई अस्तित्व है........?
क्या कोई अपना था वो......?
या फिर कोई अनजाना था वो.........?
अनजाना था.....? फिर क्यों जाना पहचाना था वो......?
शयद मेरा ही अक्स था वो, जो मुझ में समाया था.........
या शायद मेरी कल्पना का साथी था वो........
या शायद मेरी तन्हाई का साथी था वो.........
पर जो भी था......... मुझ में पूर्ण था वो..........
Monday, October 6, 2008
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14 comments:
kiya likha hai aap na kitna dard hai
padh ke bahut achha laga
Anil
achha likhati hain aap kyunki achha sochti hai. padhna achha laga. sneh !
वो अपना 'स्व' ..... यानि बुध्धि,विवेक....कई बार लगता है,दूर है,
पर वो साथ है,देखो तो ज़रा, वह तुम्हे निर्निमेष देख रहा है.....
वह तुम्हारा साथ कभी नहीं छोड़ सकता
क्षण विशेष की बात है,लगता है सबकुछ हाथ से छूट गया है !
बहुत ही सुन्दर,बहुत ही सुन्दर........
acha likha ha.......
jab half tak poem pri thi to lag raha tha ke kisi larke ke bare mein likh rahe ho app jo shayad apko dokha de gya. par end tak pahunch kar sab samaj gya
हर "सवाल" का "जवाब" नहीं होता.............
कभी कोई "सवाल" ही नहीं होता.........
जिस "सवाल" का "जवाब" नहीं होता...........
असल में वो "सवाल" ही नहीं होता............
पूछ लो जो पूछना है आज....
क्या पता तुम्हारे "सवाल" का "जवाब" ही मिल जाये आज.........Rani Mishra
आज खुद ही सवालों मे घिरे हो आप...................
यही तो है ज़िन्दगी सवालों मे घिरी हुई
जवाबो की तलाश मे खुद आज एक सवाल हुई
ना जाने वो कौन था ये भी एक सवाल है
कुछ कहे नहीं पा रहे "शायद " से ही संतुष्ट हो
जो है नहीं अपना ज़िन्दगी आज उसकी हुई अक्षय-मन
bhut hi acha likha hai rani ji..........
padkar acha laga....
ekdum real
बहुत ही खूबसूरत भावाभिव्यक्ति है...
jo bhi tha wo tumhaare men purn tha.. bass purn hone ka bhaav hi mahttv rakhta hai.
अनजाना था.....? फिर क्यों जाना पहचाना था वो......?
शयद मेरा ही अक्स था वो, जो मुझ में समाया
bahut achchhi abhivyakti hai.
Dard dikhta hai shabdon me,
Kisiki aankh me bhi dard raha hoga,
Naami zyada hai aaj haawaon me!
bahut khoob likha hai aapne..
--Gaurav (Bunty my nick name)
Wow ! Great....
Superb....
Mujhe aap ki rachna bahut achchhi lagi...
I love this poem...
Aap dil se likhti ho, tabhi to aap ki bate dil ko chooti hai...
Maine bhi kuchh aisi hi kavita "Vo kaun thi meri" likhi aur es kavita par aapki ek najar chahta hoon...
http://dev-poetry.blogspot.com/2008/08/blog-post_1779.html
यदि यह रचना सांसारिक है तो फिर कोई बात नहीं और यदि आध्यात्मिक है विल्कुल सूफी साहित्य की तरह , मालिक की तरफ इशारा है की उसके बिना मेरा कोई अस्तित्व नही हैं ,वो मेरा अक्श था ,राहबर था मार्ग दर्शक था तो फिर ये रचना इतनी सुंदर और सार्थक है की इसका कोई जवाब नहीं है
rani ji
yaise bahut se prashan hai jinka utatar koi nahi d e sakta us waqt ham khud ko khud hi khud ka darpan dikhate hai aur sukun ka ahsas karne ka pryas karte hai...rachna mein jo dard hai use mahsoos kar rahi hun mein.
kya kahun dard pe bas dua hai kam rahe dard jeevan mein apke.
Rani zindgi main aise hi kadam kadam par hume kuch achhe kuch bure log milte hain jo sikhate rahte hain
hume pata hi nahi hota ki kab koi hume sikha gaya hai
bhaut achha laga
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