आज रिश्तो की पहचान कठिन सी हो गयी है......
हर रिश्ते में सिर्फ प्यार की कमी सी हो गयी है....
माँ बाप और संतान का रिश्ता सिर्फ पालन पोषण
औरनसीहतो तक ही सिमट कर रह गया है.....
क्या किया उन्होंने संतान के लिए......
कुछ नहीं सिर्फ अपना फ़र्ज निभाया है.....
बदले में कुछ चाहने का उन्हें हक नहीं...
क्यूंकि,बच्चो की अपनी भी तो LIFE है.......
पति पत्नी का रिश्ता सिर्फ salary day तक का ही रह गया है....
क्यूंकि दोनों की अपनी भी तो कोई personal life है......
दोस्ती का रिश्ता सिर्फ mobile तक ही सीमित है......
क्यूंकि free sms असीमित है......
आज पोते पोतिया, दादा दादी को नहीं जानते.....
वो इस रिश्ते को नहीं पहचानते......
क्यूंकि बूढे माँ बाप घर की शोभा बिगड़ते है.....
।वो लोग वृधाश्रम में ही भाते है........
भाई भाई जान के दुश्मन बन बैठे है....
क्यूंकि,बीवियों को भाते है........
रिश्तो की मिठास की कमी को sweet dish पूरा करती है.....
टूटे हुए रिश्तो को सिर्फ formality ही निभाती है.......
आज दौलत से एक अटूट रिश्ता जुड़ गया है......
यही वो विरासत है जो हर रिश्ते में सोगात बन गया है......
ढूंड सकते हो तो ढूंड लाओ
वो काछे धागों का रिश्ता.....
वो रिश्तो की सच्ची मिठास......
वो प्यार, वो बंधन...
Monday, October 13, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
11 comments:
it is a new topik.badal ta vakat ma bhi purana rista yaad aata hai
हर रिश्तों में प्यार की कमी..........
यही सार बन गया है आज की भौतिक भागमभाग में
और कुछ हैं जो प्यार का नाम रिश्तों की अहमियत मानते हैं
वे रोते हैं.
विदेशी स्टाईल है जीने का,इसमें रिश्तों की गुंजाइश ही कहाँ है !
बहुत सही दर्द को गुना है
दर्द को महसूस करना भी एक रिश्ता है,जो राहत देता है,
इस कविता ने राहत दी,कि यह एहसास है
BAHUT SEE BATEN CHUBHTEE HAIN KYON KIS ACH KABHEE KABHEE TEEKHA HOTA HAI IS PYARE SE SACH EK LIYE BADHAYEE
ANIL MASOOMSHAYER
mana ki rishton ki pahchaan kathin ho gayi hai,
maanaa ki har rishte ki buniyaad hil gayi hai,
talkh ho gaye hain rishte shaayad saare,
aaj ki peedhi bhi is par sochane lag gayi hai.
jab tum jaise naye zamaane ke log aisi soch ko shabd dete ho to lagta hai ki abhi hindustaaniyon men sanskaar baaki hain.
ek katu saty kaha hai.
badhai
bahut khub.......
rishte ham hi banate hain.....
ham hi torte hain.....
fact hai..
sachmuch na chahte hue bhi hum aise hote jate hai..!
बहुत बढिया कहा है। बिल्कुल सही है आज रिश्ते यही कुछ रह गए हैं।
सच है, इस लिंक पर देखिये कल भारत के बच्चे किस बात पर रोने वाले है:
http://candicehindi.blogspot.com/2008/10/blog-post_3088.html
रिश्तों के ऊपर बिल्कुल सही लिखा है बिल्कुल सच्चाई है इसमें
जब अश्को के लावे से एक चिता जलती है
जब बिना बिहाई ख़ुशी विधवा होती है
तब मन घिली मिटटी और मजबूरियां बेरहम हाथ बनते हैं
ज़िन्दगी की हर कसोटी पर परखे जाने के लिए बेढंग आकार लेते हैं
उस पल मन क्या कहता है
क्या कुछ मजबूरियों ,परेशानियों को
ज़िन्दगी का नियम समझकर
अपने अन्दर दबाके रखता है
या फिर कठपुतली कि तरहां इधर - उधर नाचता रहता है
जब मन कि आँखे रिश्तों के दर्पण में अपने आप को देखती हैं
अपने अर्पण से समर्पण से जब श्रृंगार करती हैं
और इस श्रृंगार से रिश्ते -रुपी दर्पण को लुभाने कि नाकाम कोशिश करती हैं
इतना सब कुछ करने के बाद भी ये दर्पण हमें वोही दिखता है जो हम देखते हैं
हंस कर देखते हैं तो ख़ुशी दिखाई पड़ती है
आंसू बहाकर देखते हैं तो दुःख और तन्हाई मालूम पड़ती है
और ये दर्पण भी जरा सी चोट या दबाब पड़ने पर चकनाचूर हो जाता है
और अपने अन्दर समाई पुरानी यादों को इधर -उधर बिखेर जाता है
अगर उन यादों को समेटने कि कोशिश करता हूं
तो अपने हाथ खून मैं रंगे दिखाई देते हैं
यादों के कुछ अनसुलझे टुकड़े अपने ही दिल में गड़ते हुए दिखते हैं
उस पर भी हम ही को कसूरवार साबित क्या जाता है
मुजरिम समझकर कटघरे में खडा क्या जाता है
सफाई देने पर इल्जाम हम पर ही लगाये जाते हैं
क्यूंकि
इस अदालत में भी गवहा झूठे और मतलबी हुआ करते हैं
अपनी हर दलील में रिश्तों कि बदनामी क्या करते हैं
और
फैसला सुनाये जाने पर
एक बार फिर से समर्पण -रुपी फांसी से हम दम तोड़ते दिखते हैं
वाह ! ये भी कितने अजीब रिश्ते हुआ करते हैं
akshay-man
वाह ..... स्वागत
bahut badiya, meri kuchh poem se milti julti rachna ......bahut hi achchha vishay aur bahut hi saarthak praayas......
Post a Comment