Tuesday, November 4, 2008

ज़िन्दगी......

उलझनों से भरी है ये जिंदगानी....
एक दिन होठो पे हंसी तो......
तो दूजे दिन आँखों में पानी!
कभी राहें अनजानी.....
तो कभी जानी पहचानी!
कभी सफ़र मुश्किल.....
तो कभी मंजिल बेमानी!
कभी राह में किसी साथी का मिलना....
तो कभी अपनों का बीच राह में छोड़ जाना!
पर फिर भी लहरों से चली जा रही है ये ज़िन्दगी......
कभी ऊपर...., कभी नीचे,.....
कभी गतिमय......, तो कभी एक चुप सा ठहर.......!
लहरों की गति को नापना बड़ा मुश्किल है,
ज़िन्दगी की अनिश्चितताओं से भरी हुई......
कभी रूकती.....,
कभी बहती.......,
रिश्तों में बंधी सी हुई......
दो किनारों में बंटी सी हुई.....
ख़ुशी के पलों में कल-कल कलरव करती.....
कभी भयावह तूफ़ान का रूप लेती......
तो कभी सब्र का बाँध तोड़ निकल नक़ल जाती.....
हर चीज़ को खुद में समेटते हुए.......
ज़िन्दगी को अंत की ओर धकेलती......
आँखों में फिर वही ज़िन्दगी जीने की चाह......
वही मोत् का भय.......
वही डर......


22 comments:

masoomshayer said...

हर चीज़ को खुद में समेटते हुए.......
ज़िन्दगी को अंत की ओर धकेलती......
आँखों में फिर वही ज़िन्दगी जीने की चाह......
वही मोत् का भय.......
वही डर......


bahut sundar kaha hai

Anil

sandhyagupta said...

Bahut achchi kavita.

guptasandhya.blogspot.com

NEER said...

bhut hi achi kavita likhi hai rani ji........

zindgi ka esa hai .... kisi ko na pata kab kya ho jaye.........


HOKE MAAYUS NA YU SHAAM KI TARAH DHALTE RAHIYE
JINDGI EK BHOR HAI SURAJ KI TARAH NIKALTE RAHIYE
THEROGE EK PAAV PAR TO THAK JAOGE
DHEERE DHEERE HI SAHI MAGAR RAAH PAR CHALTE RAHIYE

adil farsi said...

सशक्त आभिवयक्ति ....मासूम संवेदनाऐ

Unknown said...

good acha likha ha

मोहन वशिष्‍ठ said...

बहुत ही अच्‍छी कविता लिखी है आपने काबिलेतारीफ बेहतरीन

Upinder Singh Dhami said...

good great job

Upinder Singh Dhami said...

good great job

वेद प्रकाश सिंह said...

मै तो जिंदगी के बारे मे बस इतना ही जानता हूँ की मेरी और मेरी जिंदगी का एक दुसरे के साथ mutual relationship है,इसलिए मै और मेरी जिंदगी हमेशा खुश रहते है क्योकि हमलोग जानते है, एक का दर्द दुसरे को भी सही तरह से जीने नहीं देगा...... मै अपनी एक कविता की दो पंक्तियाँ कहना चाहूँगा.....
' तू नहीं तो मै नहीं ,मै नहीं तो तू नहीं
ऐसा याराना दुनिया मे ,कही नहीं है जिंदगी '
वैसे आपने भी अपनी जिंदगी को अपनी नज़रिए से देखा है....आपका भी नजरिया बेहद खुबसूरत है,मगर आपकी इस 'जिंदगी....' मे मुझे दर्द ज्यादा देखने को मिला....एक बेहद खुबसूरत रचना

डाॅ रामजी गिरि said...

ज़िन्दगी की अनिश्चितताओं से भरी हुई......
कभी रूकती.....,
कभी बहती.......,
रिश्तों में बंधी सी हुई......
दो किनारों में बंटी सी हुई.....

*****जिंदगी का हसीन फलसफा*****

PARVINDER SINGH said...

कभी राह में किसी साथी का मिलना....
तो कभी अपनों का बीच राह में छोड़ जाना!
पर फिर भी लहरों से चली जा रही है ये ज़िन्दगी......
कभी ऊपर...., कभी नीचे,.....

Bahut khub khyal pesh kiya hai aapne,
zindgee ki ek katu sachai hai ye

gyaneshwaari singh said...

दो किनारों में बंटी सी हुई.....
ख़ुशी के पलों में कल-कल कलरव करती.....
कभी भयावह तूफ़ान का रूप लेती......
तो कभी सब्र का बाँध तोड़ निकल नक़ल जाती.....
हर चीज़ को खुद में समेटते हुए.......
ज़िन्दगी को अंत की ओर धकेलती......


rani khyaal bahut acha laga...
kahin kahin se flow tuta laga mujhe...is rachna ke sath ye cheez mujhe achi nahi lagee kyun ki me janti hun tumhari kalam ki takat wo isko sawar sakti thi poora...jaisa ki in upar ki lines mein sabhla hai....

phir bhi kahungi ki rachna ka khyaal bhaut uttam

sakhi

!!अक्षय-मन!! said...

sundar se ehesaason ko odhe ek sundar si rachna rani ji bahut hi acchi rachna hai ,......
ye ek aisi kadwi sacchai hai jo shayad har kisi ko ghere hue hai apne daagnuma daman mai .....
aur aapne use bakhubi parkha hai aur is rachna dwara prastut kiya hai.....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

zindagi ka sachcha falsafa pesh kiya hai....aise hi beet jaati hai zindagi..to bass fir sochana kya????????????

achchhi rachna . badhai

Few Thoughts by Anjali said...

Zindagi k maayenon ko khojti,
Yun hi zindagi k pannon ko palati,
Soch rahi hai kuch kuch,
khoj rahi hai kuch kuch,
Ye hamari pyaari si Rani...

Anj

Archana Gangwar said...

हर चीज़ को खुद में समेटते हुए.......
ज़िन्दगी को अंत की ओर धकेलती

rani....sunder....zindagi ko zeena bhi ek kala hai....

अनुपम अग्रवाल said...

आँखों में फिर वही ज़िन्दगी जीने की चाह......
निकलेगी कभी तो फ़िर ज़िंदगी जीने की राह

अमिताभ भूषण"अनहद" said...

कभी रूकती.....,
कभी बहती.......,
रिश्तों में बंधी सी हुई......
दो किनारों में बंटी सी हुई.....
जिंदगी का बहुत ही प्यारा खाका खीचा है आप ने .बहुत खूब

अमिताभ भूषण"अनहद" said...

कभी रूकती.....,
कभी बहती.......,
रिश्तों में बंधी सी हुई......
दो किनारों में बंटी सी हुई.....
जिंदगी का बहुत ही प्यारा खाका खीचा है आप ने .बहुत खूब

Unknown said...

अपने अनुभव को काव्य की इतनी सुन्दर शक्ल में बहुत कम देखा है.....
ज़िन्दगी के कई अनछुए पहलू से आपने अतने सरल तरीके से दर्शाए है,
वह सचमुच कमाल है....... मेरे पास आपकी कविताओ के लिये शब्द नहीं है,
और मुझे डर भी है की क्या मेरे ये शब्द आपकी इस ह्रदय-स्पर्शी कविता के
साथ न्याय कर भी पाएंगे या नहीं.........
पर इस खूबसूरत रचना के लिये मैं आपको दिल से बधाई देता हूँ.......
.......................................................-शुभेच्छा [Nitin sharma]

Jashwant Singh Chaudhary said...

bahut badiya poem........shayad tahe dil se jazbaatoN ke pravah mein likhi gayi hai .......bas hathoN ne kalam ko chhua aur kalam chalti chalti gayi.....simple words mein gehri baat,,,,,,poem ka pravah bahut umda tha.

"Apoorv" said...

Aapki shaili me soch uar 'imagination' ka achchha sangam hai.

Kuchh bhavnaye itni khaas hoti hai ki soch ko khula chhod kar udne do to woh khud hi apne liye labz dhundh laati hain..