सभी मुझसे कहते है कि "तुम " "PRACTICAL" नही हो,
ख्वाबों की दुनिया में जीती हो,........
कोई कहता कि ज्यादा सोचा मत करो
तो कोई कहता है कि खुली आंखों से ख्वाब देखना बंद करो!
मैं नि:शब्द एकटक सबको निहारती रह जाती हूँ,.........
क्या सचमुच "उनमे" और "मुझमे" फर्क है?
क्या किसी पर "विश्वास" करना " PRACTICAL" न होने को दर्शाता है?
क्या किसी के गम में अपनी आँखों में आंसू आ जाना आपका " लेवल" गिरता है?
क्या किसी कि खुशी में उसके साथ हंस पड़ना "निर्लजता" है?
क्या लाचारगी भरे हाथो को सहारा देना आपकी "रेपुटेशन" ख़राब करता है?
क्या सही को सही कहना ग़लत है?
क्या किसी के एहसासों को महसूस करना "पागलपन" है?
इन्ही सब प्रश्नों के उत्तर धुन्ध्ते मैं मूक सी खड़ी रह जाती हूँ...................
तभी मेरी "सहेली" ने आ कर "मुझसे" कहा- चल यहाँ से जल्दी निकलते है,
वृधाश्रम से चंदा मांगने वाले आ रहे है!
और "मैं" तेज कदमो से उसके साथ निकल गई..............
सभी " सवाल" पीछे छुट गए और.........
"मैं" सभी "जवाबों" को लिए आगे बढ़ गई!!!!!!!!
Friday, September 19, 2008
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11 comments:
तथाकथित व्यवहारिक लोग ऐसा ही कहते हैं,
पर जिसने मर्म को नहीं जिया,
विश्वास नहीं किया,
ठोकर नहीं खाई.........
उसे ज़िन्दगी के सही मायने मिले ही कहाँ !
बहुत मासूमियत होती है तुम्हारी कलम में
और इसे बनाये रखना
आग यहीं होती है.......
हिन्दी चिट्ठाजगत में इस नये चिट्ठे का एवं चिट्ठाकार का हार्दिक स्वागत है.
मेरी कामना है कि यह नया कदम जो आपने उठाया है वह एक बहुत दीर्घ, सफल, एवं आसमान को छूने वाली यात्रा निकले. यह भी मेरी कामना है कि आपके चिट्ठे द्वारा बहुत लोगों को प्रोत्साहन एवं प्रेरणा मिल सके.
हिन्दी चिट्ठाजगत एक स्नेही परिवार है एवं आपको चिट्ठाकारी में किसी भी तरह की मदद की जरूरत पडे तो बहुत से लोग आपकी मदद के लिये तत्पर मिलेंगे.
शुभाशिष !
-- शास्त्री (www.Sarathi.info)
एक अनुरोध -- कृपया वर्ड-वेरिफिकेशन का झंझट हटा दें. इससे आप जितना सोचते हैं उतना फायदा नहीं होता है, बल्कि समर्पित पाठकों/टिप्पणीकारों को अनावश्यक परेशानी होती है. हिन्दी के वरिष्ठ चिट्ठाकारों में कोई भी वर्ड वेरिफिकेशन का प्रयोग नहीं करता है, जो इस बात का सूचक है कि यह एक जरूरी बात नहीं है.
वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिये निम्न कार्य करें: ब्लागस्पाट के अंदर जाकर --
Dahboard --> Setting --> Comments -->Show word verification for comments?
Select "No" and save!!
बस हो गया काम !!
raniji aankh mein aansoo aana samvedansheelta ko darshata hai. samvedansheelta hi kisi aadmi ko insaan banati hai. blog ki duniya mein aapka swagat hai.
aap jaise hai bahut achchhe hai, aise hi bane rahiye, kahne bale to kahte hi rahege. chahe aap unki tarah se jiye ya apni tarah se.
aapke vichar bahut hi achchhe hai,shabdo ko achchhi tarah bandha hai, aise hi likhte rahiye.
ye word verification hata le,ye gujarish hai.
सभी " सवाल" पीछे छुट गए और.........
"मैं" सभी "जवाबों" को लिए आगे बढ़ गई!!!!!!!!
यथार्थ चित्रण
रानी जी,
सभी " सवाल" पीछे छुट गए और.........
"मैं" सभी "जवाबों" को लिए आगे बढ़ गई।।।।।।। ठीक कहा आपने। किसी की दो पंक्तियाँ याद आ रहीं हैं आपके कथ्य के संदर्भ में-
समझ सके तो समझ जिन्दगी की उलन को।
सवाल इतने नही हैं जबाव हैं जितने।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
हां। किसी को महसूस करना पागलपन है। इस जमाने में लोग यह पागलपन नहीं करते। लोग तो किसी के एहसास को महसूस करने का सिर्फ नाटक करते हैं। और इसे ही प्रक्टीपल थिकिंग समझा जाता है। वह वह एहसास है, जो कोई किसी से नहीं कहता, पर जब आप लोगों के शब्दों के बीच की आवाज को सुनना शुरू कर दें या उनकी नजर के धोखे को पकड़ लें तो पता चल जाता है कि उन्होंने कितनी खूबसूरती से हमारी भावनाओं को एक्सप्लोयट कर लिया है।
पवन निशान्त
http://yameradarrlautega.blogspaot.com
aap ki kavita padhkar achha laga.. kafi achhi likhti hai aap... samajh ne ke liye easy shabd proyug kiya hai... saral shabd mei aap ne bahut achhi abhibyakti jari ki hai
its really good.
make a balance between practical and emotions bec large emotions makes us savage and small emotions make us weak
क्या किसी के एहसासों को महसूस करना "पागलपन" है? सार्थक प्रश्न उपस्तिथ किया है धन्यबाद आपका हिन्दी ब्लॉग जगत में स्वागत है
आपको मेरे ब्लॉग पर पधारने का स्नेहिल आमंत्रण है
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